8 फ़र॰ 2018

जब किसी समुदाय के पास उपयुक्त नेतृत्व ना हो ?

डॉ.लाल रत्नाकर 
http://www.dainikdunia.com/akhilesh-yadav-fight-with-social-justice-discuss-5-brahmin-journalist-taj-vivanta/

'अखिलेश यादव लड़ेंगे सामाजिक न्याय की लड़ाई, इन 5 ब्राह्मण पत्रकारों से बंद कमरे में की मंत्रणा !'

"निश्चित तौर पर विडंबना की कोई सीमा नहीं बचती है जब किसी समुदाय के पास उपयुक्त नेतृत्व ना हो ?"
और यह हालत जब राजनैतिक दलों की हो तब ?

जहाँ तक सवाल माननीय मुलायम सिंह यादव जी का है तो यह कहना पड़ेगा कि उन्होंने संघर्ष करके अपनी राजनैतिक हैसियत बनायी थी और उन्हें भले ही राजनीति के ठगों ने समय समय पर ठगा हो लेकिन उनके संघर्षों का अपना एक इतिहास तो रहेगा ही। हालाँकि इतिहास की अपनी कुछ न कुछ मजबूरियां तो होती ही है..  जिन मजबूरियों को इतिहास जनता के सामने नहीं ला पाता लेकिन इतिहास तो मूलतः वही होता है बाकी तो व्यक्ति का विवरण होता है। उसी तरह की बहुत सारी मजबूरियां माननीय मुलायम सिंह के राजनीतिक जीवन की भी है। 

अगर हम इतिहास के आईने में झाके तो माननीय मुलायम सिंह हो या बहुजन का कोई भी नेता हो जिसके पीछे चौ.चरण सिंह जैसा संघर्षशील और आर्थिक और राजनैतिक समझ रखने की क्षमता का व्यक्ति जिसे किसान से लेकर के देश के उद्योग धंधों की पक्की समझ रही हो और सांस्कृतिक साम्राज्यवाद के परत दर परत की जानकारी थी या कांशी राम जैसा साहसिक व्यक्ति रहा हो उसके बाद का हस्र क्या हुआ ? चौ. चरण सिंह जी जब राष्ट्रीय राजनीति से अवसान कर गए तब उनके पीछे उनके सुयोग्य इंजीनियर पुत्र भारतीय राजनीति में एक भी क़दम अपने पिता के राजनितिक चिन्हों पर नहीं चल पाए । जबकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाटों ने चौधरी चरणसिंह की विरासत के रूप में चौधरी अजीत सिंह को अपनाया भी यही नहीं उत्तर प्रदेश के अन्य भागों में भी चौधरी अजीत सिंह चौधरी चरण सिंह की विरासत के रूप में स्वीकार तो किए गए लेकिन चौधरी अजीत सिंह की राजनैतिक सोच चौधरी चरण सिंह की सोच समझ के मुक़ाबले बिलकुल ही उपयुक्त नहीं बानी कारन जो भी हो ?

यह सब यद्यपि चौ.चरण सिंह के अवसान के उपरांत हुआ ! लोगों का तो यहाँ तक मानना है कि चौधरी चरण सिंह कभी नहीं चाहते थे कि उनका बेटा उनके बाद राजनीति में आए ! चौधरी साहब किसान नेता थे और उन्होंने पूरे हिंदी बेल्ट में बहुत सारे नेताओं को निकाल करके राजनीतिक क्षितिज पर लाये जिनमें प्रमुख रूप से आगे किये जिनमें कई लोग कालांतर में भारत की राजनीति की अच्छी समझ रखने वाले माने गए जिसमें श्री शरद यादव का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है ! चौधरी साहब के अवसान के बाद उनकी विचारधारा को शरद यादव ने आगे बढ़ाया। जिसकी वजह से उत्तर प्रदेश और बिहार में दो ऐसे नेता निकले जिनकी शुरुआत अपनी तरह से अपनी राजनीति शुरू की थी लेकिन राष्ट्रीय राजनीति में उनकी तब कोई पकड़ नहीं थी और न ही अब है !

भारतीय राजनीति को जो लोग जानते हैं वो लोग यह बहुत अच्छी तरह जानते हैं कि उत्तर भारत के जिन प्रांतों में पिछड़ी जाति के नेता उभरे उसके पीछे जिस इंजीनियर का हाँथ था वह था राजनीतिक इंजीनियर श्री शरद यादव का उत्तर प्रदेश में जब जनता दल सत्ता में आया था तब मुख्यमंत्री के लिए अजीत सिंह और मुलायम सिंह आमने सामने थे और अजीत सिंह के पीछे तत्कालीन प्रधानमंत्री मा. वी पी सिंह जी का हाथ था लेकिन मा. मुलायम सिंह यादव जी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे कितने लोग इस बात को जानते होंगे यह तो मैं नहीं कह सकता लेकिन मुलायम सिंह जी इस बात को ज़रूर जानते हैं कि वो मुख्यमंत्री न बन पाते यदि उनकी पीछे उस समय के राष्ट्रीय युवा नेता श्री शरद यादव का हाथ न होता।

यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि बिहार की राजनीति में लालू प्रसाद यादव को मुख्यमंत्री के रूप में स्थापित करने का भी दारोमदार और योगदान श्री शरद यादव को ही जाता है क्योंकि बिहार की राजनीति के बारे में मेरा अनुभव कम है इसलिए इतना ही कह पाना उपयुक्त है जो तत्कालीन सच्चाई है आगे जो कुछ होता है और जिस तरह से नीतीश कुमार जी अलग होते हैं यहाँ तक कि नीतीश जी का पूरा राजनैतिक जीवन ही श्री शरद यादव के राजनैतिक दिशा निर्देश का परिणाम है ।

मैं यहाँ उत्तर प्रदेश की राजनीति के बारे में बात कर रहा हूँ इसलिए राष्ट्रीय राजनीति का उल्लेख दूसरे लेख में करूँगा यहाँ पर हम फिर वापस आते हैं चौधरी चरण सिंह के उपरांत माननीय अजीत सिंह जी के राजनैतिक जीवन पर अगर देखा जाए तो इसी तरह की राजनीति हमारे पूर्व मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव सिंह जी के साथ हो रही है इन दोनों घटनाओं में अंतर केवल इतना है कि एक पिता के अवसान के उपरांत राजनितिक विरासत पाया दूसरा पिता के जीवन काल में ही पिता की राजनितिक विरासत के रूप में उत्तर प्रदेश की राजनीति में प्रायोजित किया गया। क्योंकि माननीय मुलायम सिंह यादव जी अपने जीवनकाल में राजनैतिक विरासत सौंपने की जिस मंशा से अपने पुत्र श्री अखिलेश यादव जी को मुख्यमंत्री के रूप में प्रदेश को सौंपे थे उन्होने बहुमत के पाँच सालों में पारिवारिक छबि को जिस तरह से धूल धूसरित किया उससे कोई भी अनभिज्ञ नहीं है।  

राजनीति में चापलूसों और चमचों की भरमार होती है लेकिन वो राजनीति के लिए मील के पत्थर नहीं माने जाते है।  हमेशा राजनीति को प्रभावित करने वाले लोग नेपथ्य में होते हैं लेकिन दुर्भाग्य से उत्तर प्रदेश की उस सरकार की राजनीति में सरकार को प्रभावित करने वाले लोग मुख्यमंत्री से आगे आ गये थे !

राजनीतिक समझ के लोग इस बात को बहुत ही अच्छी तरह से समझते हैं कि मौजूदा राजनीतिक दल किस तरह की राजनीति कर रहा है अगर इसका राजनीतिक मूल्यांकन किया जाए तो उस 5 साल की बहुमत वाली सरकार में राष्ट्रीय पार्टी होने के बावजूद उसका कोई काम राष्ट्रीय राजनीती के लिए मानदंड नहीं बना। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में श्री अखिलेश यादव ने कोई राष्ट्रीय सपना नहीं देखा था हालाँकि प्रदेश के विकास के लिए उन्होंने जितनी भी योजनाएं चलाईं उसकी समाजवादी राजनिति से कोई बहुत लेना देना नहीं था। 
उनके सलाहकार मंडली में जो लोग भी थे वो राजनीतिक रूप से शत प्रतिशत ग़ैर राजनैतिक लोग थे। जिन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री के आगे पीछे इस तरह का औरा बनाया कि युवा मुख्यमंत्री सीखने की बजाए अति उत्साह में ऐसे ऐसे कार्य कर डाले जो ना तो समाजवादी राजनीती के लिए उपयुक्त थे और न ही उनकी राजनैतिक समझ  की ही बात थी। हालाँकि उनके प्रशंसकों द्वारा उनके  इन कार्यों का बहुत प्रचार प्रसार किया गया। लेकिन वह काम वोट के हिसाब से और प्रदेश के विकास के हिसाब से कारगर साबित नहीं हुआ। यही कारण था कि उस समय के चुनाव में किनारे रहने वाली भाजपा बहुत बड़े बहुमत के साथ उत्तर प्रदेश की राजनीति में विराजमान हो गई।  जो लोग माननीय नेताजी को अच्छी तरह से जानते हैं वे जानते हैं कि नेताजी भले ही बीजेपी के  आंतरिक रूप  से सम्मान देते हों लेकिन हमेशा देश में भाजपा को रोकने की वकालत करते आए हैं। अफ़सोस होता है यह कहते हुए कि उनके युवा पुत्र के इर्द गिर्द भाजपा के लोग रात - दिन घेरे रहे और अंत में भाजपा पूरी  ताक़त के साथ उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपनी जगह बना ली ? 

यही कारण है कि आने वाले दिनों में जिस तरह से अजीतसिंह स्वर्गीय चौधरी चरण सिंह के उत्तर प्रदेश में और अब वह भाजपा पूरे अपने ताक़त के साथ उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपनी उपस्थिति बनाली है। जिससे यह उम्मीद नहीं दिखती की आने वाले दिनों में संघर्ष का कोई तरीका यह याद कर सकें और अपनी छवि प्रदेश की बहुजन अवाम को इनकी तरफ खींच सके जिससे  कि आने वाले दिनों में जिस तरह से अजीत सिंह स्वर्गीय चौधरी चरण सिंह के उत्तर प्रदेश में निरंतर अपनी पह्चान खोते गये डर है कि यही हाल कहीं उस युवा मुख्यमंत्री का भी ना हो जाय ?

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