9 मई 2017

लालू प्रसाद यादव को फसाने के मायने !

लालू प्रसाद यादव को फसाने के मायने !
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भारतीय राजनीति में जो भी हो लालू प्रसाद को कितना सीरियस लिया जाता है यह एक अलग बात है। लेकिन कुछ लोग बहुत अच्छी तरह जानते हैं कि लालू प्रसाद यादव को सुना जाता है और उन्हें सुनने वाले लोग देश में बड़ी संख्या में आज भी उपस्थित हैं जिनमें दलित पिछड़े और अल्पसंख्यक मुख्य रूप से हैं कुछ सवर्णों को भी लालू प्रसाद यादव अच्छे लगते हैं जिन्हे सच से दुराव नहीं है। क्योंकि लालू प्रसाद यादव का दिमाग बिल्कुल साफ है कि वह स्पष्ट तौर पर समझते हैं कि किसकी कितनी भागीदारी राजनीति में होनी चाहिए बिहार जैसे प्रदेश में, उसी तरह देश में भी। जो लालू प्रसाद यादव को जानते हैं वह या उनके जैसा व्यक्ति था जिसने वहां के भूमिहारों को धराशाई किया ? और राजनैतिक रूप से वह उन्हें बताया की उनकी जगह क्या है। फिर उसी की भरपाई करने के लिए देश भर का सामंतवादी सोच का वह वर्ग हर तरफ से उनको फसाने का सफल प्रयास कर रहा है।

एक तरह से देखा जाय तो वैधानिक रुप से फंसा ही लिया है, लेकिन इस फसाने को हमें दूसरे तरह से भी देखना चाहिए कि जब अंग्रेजों का राज्य था तो वह हर उस आदमी को अपराधी बना देते थे जो उनका विरोध करता था। आज की तारीख में लालू प्रसाद यादव जैसा व्यक्ति समग्र रूप से उनका विरोध करता है और उनके विरोध को आम आदमी समझता भी है। अब यह आम आदमी की जिम्मेदारी बनती है कि लालू प्रसाद यादव के लिए न्याय की मांग सड़क पर उतर कर करें और सामाजिक न्याय के मसीहा को इतना समर्थन दें जिससे वह देश की असली आजादी को आम जन तक पहुंचाने में कामयाब हो सके।
यही अवसर है जब हम बगावत कर सकते हैं संस्था से जो इस तरह का षडयंत्र कर रहे हैं ? क्योंकि ऐसे कितने राजनीतिज्ञ, व्यापारी, उद्योगपति, अफसर या धार्मिकनेता लोग इस देश में हैं जो दूध के धुले हुए हैं और बिल्कुल साफ सुथरे हैं ? यह आवाज बुलंद होनी चाहिए सबसे पहले उसे पकड़ा जाए जिसकी वजह से देश में आज तक बाबा साहब भीमराव अंबेडकर का लिखा हुआ कानून / संविधान ठीक से लागू नहीं हो सका और अगर ठीक से लागू हुआ होता तो आज इस तरह से लोगों को जातियों को नाम पर फसाया न जाता। क्योंकि जगन्नाथ मिश्रा जाती विशेष के नाते कहीं नज़र नहीं आ रहे हैं ? जबकि सारा जहर उनका है जिसका असर लालू प्रसाद पर हो रहा है। उधर जाति विशेष के आधार पर न्यायाधीश को न्यायाधीश द्वारा ही जलील किया जा रहा है और उसे जेल किया जा रहा है जो भारत के इतिहास का पहला मामला है।
ऐसे में सामाजिक न्याय की बात करने वाले सामाजिक न्याय के चिंतकों को भक्तों को सड़क पर आना चाहिए और कानून एक जैसा हो ! संविधान एक जैसा सबके लिए है। इसपर आंदोलन खड़ा करना चाहिए और राजनीतिक रूप से फसाया जा रहे व्यक्तियों को हमें ताकत देना चाहिए जिससे वह सामाजिक न्याय की लड़ाई को आगे बढ़ा सकें।
मुझे तो यही लगता है की यदि लालू प्रसाद पांडेय होते तो ऐसा न होता ?
डॉ. लाल रत्नाकर 

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